चंद्र-ग्रहण - 8 नवंबर 2022
- Sanjeev Ranjan Mishra
- Nov 7, 2022
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ग्रहण क्यों एवं कब पड़ते हैं?
ग्रहण एक खगोलीय घटना है। हर वर्ष कम से कम 4 और अधिक से अधिक 6 ग्रहण पड़ते है। सूर्य और चन्द्र ग्रहण हमेशा साथ-साथ होते है। ग्रहण का पड़ना कोई असाधारण घटना नहीं वरन एक हमेशा होने वाली घटना है। क्योंकि ग्रहण सामान्य घटना है इस कारण इसके परिणाम सामान्य ही होते है। यह एक प्रकार से उत्प्रेरक(catalyst) का कार्य करता है। यदि अन्य ग्रह-योग प्रतिकूल हो तो ही प्रतिकूल परिणाम होंगे या पहले से चली आ रही प्रतिकूलता में वृद्धि होगी। सामान्य बोलचाल की भाषा में ग्रहण का अर्थ किसी कार्य का बाधित या रुक जाना होता है – इसी लिए ग्रहण अनुकूल परिणाम को बाधित या प्रतिकूल परिणाम को बढ़ाने वाले होते है जब अन्य ग्रह योग प्रतिकूल हों।
ज्योतिष की दृष्टि से सूर्य और चंद्रमा जब कभी भी राहु और केतु से एक निश्चित अंतर पर आते है तो ग्रहण लगता है – पूर्णिमा के समय चन्द्र ग्रहण और अमावस्या के समय सूर्य ग्रहण पड़ता है। क्योंकि राहु–केतु छाया गृह हैं - जिनका कोई पिण्ड (mass) नहीं होता; ये दो क्रांति-पथ (elliptical path) के कटान बिंदु से बने हैं। क्योंकि इनका कोई mass नहीं है इस कारण राहु-केतु किसी राशि के स्वामी नहीं हैं। इनका फल जिस राशि में ये स्थित होते हैं उनके स्वामी पर निर्भर करता है।
इसी कारण ग्रहण के फल जिस राशि एवं नक्षत्र में पड़ रहे हैं उनके स्वामी की स्थिति के आधार पर देखे जाएंगे। ग्रहण-राशि एवं उसके स्वामी का पापाक्रांत होना या पापी होने पर ही ग्रहण विशेष के फल अशुभ होंगे अन्यथा नहीं। शुभ प्रभाव होने पर विशेष अनुकूल परिणाम भी संभव हैं। ग्रहण एक विशेष स्थिति है जो एक विशेष परिणाम शुभ या अशुभ देने की क्षमता रखता है। ग्रहण को हमेशा प्रतिकूल समझना ज्योतिष की दृष्टि से अज्ञानता है।
राहु-केतु के साथ सूर्य और चंद्रमा के आने से ही ग्रहण लगते हैं। राहु–केतु एक राशि में 18 माह तक संचरण करते हैं। इन 18 माह के दौरान कम से कम चार और अधिक से अधिक छह (6) ग्रहण पड़ सकते हैं। वर्तमान में राहु-केतु का संचरण मेष-तुला राशि से चल रहा है जो अक्तूबर 2023 तक रहेगा। इस दौरान कुल 8 ग्रहण पड़ेंगे – 4 सूर्य-ग्रहण -4 चन्द्र-ग्रहण। इस में से 6 ग्रहण मेष और तुला राशि क्षेत्र (axis) में हैं। यहाँ यह भी ध्यान रखने की बात है कि राहु-केतु एक राशि का 18 महीने में और पूरे राशि चक्र का 18 वर्ष में संचरण करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जो ग्रहण राहु के मेष राशि के संचरण करते समय पड़ रहे हैं वो 9 या 18 वर्ष के बाद ही पुनः दुबारा होंगे या 9 या 18 वर्ष की आवृति पर पहले घटे होंगे। जब राहु-केतु इसी axis ( मेष- तुला या तुला मेष) से दुबारा गुजरेंगे।
ग्रहण कब महत्वपूर्ण होते हैं -
जब देश या व्यक्ति के लग्न और राशि को प्रभावित करे।
ग्रहण राशि किसी अन्य पाप ग्रह के द्वारा संचरित हो या सम्बंधित हो।
राष्ट्र या व्यक्ति के लग्न केंद्र पाप ग्रहों के द्वारा संचरित हो रहे हों।
व्यक्ति की कुंडली के संदर्भ में ग्रहण के समय चलने वाली दशा एवं अन्तर्दशा भी ग्रहण के प्रभाव को प्रभावित करती है।
ग्रहण के प्रभाव मुख्यतः जिस भाव में ग्रहण पड़ता है या जिस भाव से ग्रहण अष्टम में है उस भाव के सन्दर्भ में ही होता है - वर्तमान चंद्र ग्रहण मेष राशि के भरणी नक्षत्र में है तो यह ग्रहण मेष राशि वाले राष्ट्र या व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य / प्रजा की सुरक्षा / व्यक्ति या शासक के मान-सम्मान को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा। साथ ही यह शत्रु पक्ष की प्रबलता एवं रोग-ऋण से परेशान भी करेगा।
यदि व्यक्ति विशेष की कुंडली में ग्रह योग प्रबल हैं और वर्तमान दशा-अन्तर्दशा अनुकूल है तब ग्रहण के विशेष प्रतिकूल परिणाम नहीं होते।
पूर्व में मेष - तुला राशियों में हुए ग्रहण के प्रभाव
इस तरह ग्रहण का पड़ना सामान्य तो है पर किसी राशि विशेष में इसका पड़ना काफी लंबी अवधि पर होता है – इसी कारण इसका महत्व विशेष हो जाता है। यदि यह ग्रहण किसी अन्य पाप ग्रह से प्रभावित हुआ तो और भी unique हो जाता है और तभी इस ग्रहण के दूरगामी परिणाम देखने को मिलते है। यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि जब कभी पाप ग्रह काल पुरुष कुंडली के केंद्र से संचरण करते हैं तो विशेष और दीर्घकालिक प्रभाव वाले परिणाम होते है। यदि ग्रहण राशि किसी अन्य ग्रह के प्रभाव से स्वतन्त्र है तो ग्रहण के प्रभाव सामान्य ही होंगे। यदि हम पिछले १०० सालों में तुला एवं मेष राशि में पड़ने वाले ग्रहण के प्रभाव को देखें, तो हम यह पाएंगे कि ग्रहण के विशेष दूरगामी परिणाम तभी हुए हैं जबकि ग्रहण राशि किसी अन्य धीमी गति के बाह्य ग्रह (slow moving outer planet) से प्रभावित हो। उदाहरण के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के समय केतु के साथ शनि एवं यूरेनस की युति मेष राशि में थी। 1977 में कांग्रेस सरकार का पतन एवं जनता पार्टी की सरकार के शासन के समय राहु एवं यूरेनस की युति तुला राशि में थी, पुनः 2014 में मोदी सरकार के गठन के समय राहु-शनि की युति तुला राशि में थी। अभी वर्तमान में राहु-यूरेनस की युति मेष राशि में है जहाँ ग्रहण-योग है। ग्रहण को विशेष प्रभावी होने के लिए अन्य ग्रह का योग ज़रूरी है।
राहु-केतु के मेष-तुला संचरण से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं:
ग्रहण के फ़ल किन बातों पर आधारित होते हैं?
इसके अतिरिक्त ग्रहण किस प्रकार की राशि में पड़ रहा है उसका तत्व (अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी) क्या है, ग्रहण के परिणाम इस पर निर्भर करते हैं। राशि के तत्व के आधार पर ग्रह के परिणामो का विश्लेषण किया जाता है। अग्नि तत्व राशि से प्रभावित होने के कारण ग्रहण के परिणाम विशेष उग्रता लिए होते हैं। इस संदर्भ में वराहमिहिर का विशेष कथन है कि यदि ग्रहण राशि अग्नि तत्व से प्रभावित हो या दृष्ट हो या फिर ग्रहण के कुछ समय बाद मंगल का ग्रहण राशि से संचरण हो तो यह ग्रहण उग्र परिणाम एवं युद्ध की आशंका लिए होते है। अग्नि तत्व राशि में पड़ने के कारण वर्तमान में जो भी ग्रहण राहु के मेष राशि में रहते हुए पड़ेंगे उनमें उग्रता एवं अचानक दुर्घटना देने की सम्भावना रहेगी। यह उस समय ज़्यादा परिलक्षित होंगे जब ग्रहण-राशि किसी अन्य पाप ग्रह के द्वारा प्रभावित हो जो कि शनि के कुम्भ संचरण के बाद हो जायेगा। कुम्भ संचरण के समय शनि मेष राशि एवं राहु से पूर्ण दृष्टि से सम्बन्ध बनाएगा। ग्रहण किस नक्षत्र में पड़ रहा है, ग्रहण के परिणाम को जानने में इसका भी विशेष महत्त्व है। ग्रहण के समय ग्रहण राशि के स्वामी एवं ग्रहण - नक्षत्र स्वामी की स्थिति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
वर्तमान ग्रहण कब?
वर्तमान में सूर्य ग्रहण 25 अक्टूबर 2022 को पड़ा था और अब 8 नवंबर को चंद्र ग्रहण पड़ेगा। आंशिक चंद्र ग्रहण पूरे भारत में दिखलाई देगा तथा पूर्ण चंद्र ग्रहण भारत के पूर्वी राज्यों में ही देखा जा सकेगा। सबसे पहले यह चंद्र ग्रहण इटानगर में दिखाई देगा तत्पश्चात पटना, गुवाहाटी, रांची, सिलीगुड़ी, कोलकाता एवं अन्य स्थानों पर भी दिखलाई देगा। नई दिल्ली में आंशिक चंद्र ग्रहण ही दिखाई देगा। चूंकि भारत में यह ग्रहण दृश्य है इसीलिए चंद्रग्रहण के सूतक हर जगह मान्य होंगे। यह ग्रहण मेष राशि में भरणी नक्षत्र में पड़ रहा है, यह ग्रहण भारत की स्वतन्त्र प्राप्ति कुंडली के बारहवें भाव में पड़ रहा है। ग्रहण के प्रारम्भ के समय दिल्ली में कुम्भ लग्न का उदय रहेगा और यह ग्रहण - कुंडली के तृतीय भाव में पड़ रहा है।
नीचे के सारणी में राहु-केतु के तुला - मेष संचरण के समय पड़ने वाले ग्रहण के समय दर्शाये गए हैं -
ग्रहण के परिणाम देश-विदेश के सन्दर्भ में -
यह ग्रहण राष्ट्र एवं अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को विशेष रूप से प्रभावित करने वाला होगा क्योंकि यह ग्रहण काल-पुरुष के लग्न पर एवं अग्नि तत्व राशि पर है, राहु के साथ यूरेनस का संचरण है और दशम केंद्र में शनि विराजमान है। काल पुरुष के केंद्र का पाप से प्रभावित होना एवं ग्रहण का योग बनना प्रायः सभी राष्ट्रों के लिए कुछ न कुछ विपरीत परिणाम देने वाला अवश्य होगा। युद्ध की आशंकाएं बढ़ेंगी एवं आतंकवादी गतिविधियां समय-समय पर देखने को मिलेंगी, विभिन्न प्रकार के दुर्घटना एवं प्राकृतिक आपदा के योग भी बन सकते हैं। परिणाम विशेष रूप से प्रतिकूल एवं लम्बे अंतराल तक होने वाले नज़र आते हैं क्योंकि मेष राशि का स्वामी मंगल गोचर में एक राशि में काफी लम्बे अंतराल तक अनियमित रूप से (मार्गी-वक्री) होकर संचरण करेगा। प्रायः सभी जगह उग्रता बढ़ेगी। बहुत से राष्ट्रों में आंतरिक उपद्रव एवं युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती नज़र आएगी। सामान्य रूप से चंद्र-ग्रहण के परिणाम 3 माह तक होते हैं पर वर्तमान ग्रहण के परिणाम काफी दूरगामी होने की सम्भावना है क्योंकि अप्रैल-मई 2023 में पुनः मेष-तुला राशियों पर ग्रहण योग बनेगा।
मेष राशि के अंतर्गत दक्षिण रशिया, तजाकिस्तान, पलेस्टाइन, अफ्रीका, स्पेन, टर्की, मेक्सिको, क्यूबा एवं उरुग्वे आते हैं अतः यह राष्ट्र विशेष रूप से प्रभावित होंगे। ग्रेट ब्रिटेन, चीन, बर्मा, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, सीरिया, सऊदी अरब आदि राष्ट्र तुला राशि के अंतर्गत आने के कारण भी प्रभावित होंगे।
भारत के सन्दर्भ में ग्रहण द्वादश भाव से है जो व्यय की अधिकता, विदेशी संबंधों में तनाव, देश एवं शासक के सन्दर्भ में दुष्प्रचार एवं आंतरिक एवं बाह्य शत्रु से तनाव की सम्भावना को इंगित करता है। क्योंकि यह ग्रहण राशि एवं लग्नेश से दशम भाव से है अतः राजा को या शासक वर्ग को चिंता एवं परेशानी देता है। शासक वर्ग को विशेष अनुकूल परिणाम नहीं प्राप्त होंगे। प्रजा में रोष उत्पन्न होने की सम्भावना रहेगी। मोटे तौर पर यह ग्रहण आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र के लिए कुछ प्रतिकूल परिणाम देने वाला होग। तरह-तरह के विवाद, महंगाई एवं सामान्य जनता के लिए परेशानी की अधिकता की सम्भावना रहेगी।
विभिन्न राशियों के लिए ग्रहण के परिणाम नीचे सारणी में दर्शाये गए हैं –
सामान्यतः ग्रहण किसी भी व्यक्ति के राशि से तीसरे, छठे, दशम या एकादश भाव में पड़ता है तो प्रतिकूल परिणाम नहीं होते। विशेष प्रतिकूल परिणाम लग्न, सप्तम एवं अष्टम भाव में पड़ने वाले ग्रहण के ही होते हैं। वर्तमान चंद्र ग्रहण के समय मेष, कन्या एवं तुला राशि के लिए परिणाम विशेष अनुकूल नहीं हैं इसमें भी मेष एवं तुला के लिए विशेष प्रतिकूल हैं। कुम्भ, वृश्चिक, कर्क और मिथुन राशि के लिए ग्रहण के सामान्य फ़ल अनुकूल हैं। विशेष अनुकूलता कुम्भ एवं वृश्चिक राशि के लिए होगी।
यह ग्रहण भरणी नक्षत्र में पड़ रहा है इस कारण भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी एवं पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में उत्पन्न जातक के लिए परिणाम शुभ नहीं हैं। साथ ही मंगल के नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा एवं बुध के नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्र में उत्पन्न जातक के लिए भी ग्रहण के परिणाम विशेष शुभ नहीं हैं। इन जातकों को ग्रहण के पक्ष (१५ दिन के अंदर) में विशेष सावधानी की आवश्यकता है, किसी नए कार्य, डील, नए सम्बन्ध को करना विशेष अनुकूल परिणाम नहीं देगा। ग्रहण के ये परिणाम सामान्य हैं, प्रत्येक व्यक्ति के सन्दर्भ में उनके कुंडली के अनुसार चलने वाली ग्रह-दशा के आधार पर इसमें वृद्धि या कमी होगी। ग्रहण के समय सामान्यतः कामना पूजन निषिद्ध है, केवल मंत्र साधना या अध्यात्म से सम्बंधित पूजन -जप किया जा सकता है। ग्रहण के प्रतिकूल परिणाम की शांति हेतु ग्रहण के पहले या बाद में शिव-उपासना, रुद्राभिषेक करना लाभ-प्रद होगा। भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी एवं पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में उत्पन्न जातक के लिए लक्ष्मी-पूजन करना ग्रह के प्रतिकूल परिणाम को कम करेगा। मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मे व्यक्तियों को हनुमान पूजन एवं अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्र में जन्मे व्यक्तियों को गणेश का पूजन विशेष लाभ-प्रद है। विशेष रूप से यह बात समझने की है कि चंद्र-ग्रहण चन्द्रमा को प्रभावित करता है जो कि मन का कारक है, इसीलिए प्रायः हर व्यक्ति को मानसिक रूप से कहीं न कहीं प्रभावित करेगा।



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